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बादल / उर्मिल सत्यभूषण

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कहाँ से आ गये बादल?
हमें हरषा गये बादल?

कभी ये काले काले हैं
कभी रूई के गोले हैं

धवल ये तैरते शतदल
हृदय को भा गये बादल

कि नम की सड़क पर घोड़े
जो सरपट जा रहे दौड़े

बजाते द्वार की सांकल
हमें धमका गये बादल

कभी चमचम चमकता जो
कभी दिपदिप दमकता जो

वो बिजल से जड़ा आँचल
कभी फहरा गये बादल

कभी न बूंद बरसाते
यूं ही छू छू निकल जाते

भरी गागर छलकता जल
कभी बरसा गये बादल

कभी सागर पे पोतों से
कभी उड़ते कपोतो से

जो खोले पंख दल के दल
हमें बहका गये बादल

कभी वो जुल्म भी ढाते
गरीबों को सता जाते

उड़ा छप्पर, करें घायल
उन्हें तड़पा गये बादल

मेरे दिल में समाते वो
मेरी आँखों में आते वो

कि बन संवेदना का जल
मुझे सरसा गये बादल

कभी अम्बर पे छा जाते
कभी धरणि पे आ जाते

कभी कलकल, कभी हलचल
मचाते आ गये बादल

कि द्रुमदल महक उठते हैं
कि खगकुल चहक उठते हैं

कि जंगल में हुआ मंगल
कभी जब छा गये बादल।