Last modified on 26 सितम्बर 2011, at 04:48

बापड़ा रुंख / रूपसिंह राजपुरी

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:48, 26 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूपसिंह राजपुरी |संग्रह= }} {{KKCatMoolRajasthani}} {{KKCatKavita‎}}<poem>टा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

टांग टूटै घोड़ै नै,
मरवा दियो जावै।
सूख चुकै फूलां नै,
जलवा दियो जावै।
एकली छीयां खातर,
कुण लगावै रूंखां नै।
जका फल नीं देवै,
बानै कटवा दियो जावै।