भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाबुल कैसे बिसरा जाई / दरिया साहब

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:15, 23 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दरिया साहब |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाबुल कैसे बिसरा जाई?
जदि मैं पति-संग रल खेलूँगी, आपा धरम समाई।
सतगुरु मेरे किरपा कीन्ही, उत्तम बर परनाई;
अब मेर साईंको सरम पड़ेगी, लेगा चरन लगाई॥
तैं जानराय मैं बाली भोली, तैं निर्मल मैं मैली;
तैं बतरावै, मैं बोल न जानूँ, भेद न सकूँ सहेली॥
तैं ब्रह्म-भाव मैं आतम-कन्या, समझ न जानूँ बानी;
'दरिया' कहै. पति पूरा पाया, यह निश्चय करि जानी॥