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बाबू जी बोलो ग़रीब का दुनिया में रखवाला कौन / विनोद तिवारी

बाबू जी ! बोलो ग़रीब का दुनिया मे‍ रखवाला कौन?
हमदर्दी की भूख नहीं है देगा हमें निवाला कौन??

बाबूजी! हमने कोरट में हलफ़ उठाकर सच बोला
पर बिन पैसे क़ानूनों का देता वहाँ हवाला कौन??

बाबूजी! बेटी ग़रीब की, घास काटने गई रही
किस-किस से अब कहे बिचारी कर बैठा मुँह काला कौन??

बाबूजी! ये उजला सूरज भी कितना अन्यायी है
हर घर जाकर नहीं पूछता लेगा यहाँ उजाला कौन??

बाबूजी! बस न्याव-धरम से कह दो है रोटी किसकी
मेहनत या पैसा, दोनो में, है असली हक़ वाला कौन??

बाबूजी! अपने सब बैरी, सावन भादों चैत-बैसाख
वरना यूँ मौसम-बे-मौसम, देता देस निकाला कौन