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बाबू धीरे से चलिऔ ससुर गलिया / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में दुलहे को ससुर की गली में अपने वस्त्राभूषणों को सँभालकर धीरे-धीरे चलने का निर्देश किया गया है।

बाबू धीरे से चलिऔ<ref>चलिए</ref> ससुर गलिया।
दुलहा धीरे सेॅ चलिऔ ससुर गलिया।
ससुर गलिया हो ससुर गलिया॥1॥
तोहरऽ मौरी में लागल अनार कलिया।
बाबू धीरे सेॅ चलिऔ ससुर गलिया॥2॥
तोरे जोड़बा में लागल चंपा कलिया।
बाबू धीरे सेॅ चलिऔ ससुर गलिया॥3॥
ऊपर ताकबै<ref>देखिएगा</ref> तऽ हिलत मौरिया।
नीचे ताकबै तऽ खसत<ref>गिर जाएगा</ref> मौरिया।
बाबू धीरे सेॅ चलिऔ ससुर गलिया॥4॥

शब्दार्थ
<references/>