Last modified on 26 जनवरी 2019, at 07:01

बारहा ख़ुद को आज़माते / हस्तीमल 'हस्ती'

बारहा ख़ुद को आज़माते हैं
तब कहीं जा के जगमगाते हैं

बोझ जब मैं उतार देता हूँ
तब मेरे पाँव लड़खड़ाते हैं

शक़्ल हमने जिन्हें अता की है
वे हमें आईना दिखाते हैं

सुख परेशां है ये सुना जबसे
हम तो दुख को भी गुनगुनाते हैं

देखकर हर घड़ी उदास हमें
लम्हे खुशियों के लौट जाते हैं

तीरगी तो रहेगी ही ऐ दोस्त
वे कहां मेरे घर पे आते हैं