भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बारिशों की रहमतें जर्जर घरों से पूछिए / विनय कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बारिशों की रहमतें जर्जर घरों से पूछिए।
टपकती खपरैल भींगे बिस्तरों से पूछिए।

देखना या भींगना कुछ देर तक आसान है
झेलना मौसम मुकम्मल बेघरों से पूछिए।

पूछिए हमसे ज़माने की नज़र का बाँकपन
रंग जूतों के मियाँ झुकते सरों से पूछिए।

आदमी की राख से तामीर क्या करने चले
पूछिए, इन आग के सौदागरों से पूछिए।

हाथ से कुछ पूछना सरकार की तौहीन है
हादसा कैसे हुआ यह पत्थरों से पूछिए।

सर झुकाने का सलीक़ा पूछिए बाज़ार से
सर उठाने की अदाएँ शायरों से पूछिए।