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बारिश / एल्विन पैंग / सौरभ राय

हम बारिश के साथ रहते हैं।

हलकी बारिश, तेज़ बारिश।
सर्द करती, सताती, भिगोती, हैरान करती
बेमौसम, बेरहम बारिश।

बारिश जो चुभती है उँगलियों-सी,
छाते को ललकारती हुई;
राहत भरी बारिश
जिसमें आप शामिल होते हैं
अपने तपते चहरे की उँगली थामे।

बारिश, उलटे पड़े ताड़ के पत्ते पर
जिसकी थाप कानों से टकराती है
पंखों के फड़फड़ाने की तरह,
उड़ने को तैयार।

बारिश, जैसे कोई मौसीक़ी,
एक क़िस्म की आवाज़।
जिसकी झनकार सुनते हैं आप
खुली खिड़की के सामने बैठ
धीरे से कहते – बारिश –
अपनी अलग-सी ज़ुबान में
अकेले, ख़ुद से।

बारिश जो घास और कंक्रीट पर
एक जैसी गिरती, और बरसती चली जाती है
जानें कितनी रातों तक
आप के सपने बने होते बारिश के,
भूरे टीले के किनारे बेसब्र
बारिश की नज़्मों में भीगते कंकड़
ऊब-डूब हिलते हैं।

मुझे याद है उन क़दमों की आहट
बहते पानी की कलकल के साथ
छप-छप गिरती हुई जब वो
अपनी मौसिक़ी ख़ुद सजाती थी
और गुनगुना उठती थी अपने आने की तासीर में

बारिश का तोहफ़ा। बारिश की पुकार।
हर तरफ़ बारिश, इतनी मामूली
कि लगभग एक त्रासदी। बारिश जिसमें हम बस जाते
मुकम्मल, और इतने ग़ैरहाज़िर जैसे मुहब्बत,
बारिश जिसे हम नज़रअन्दाज़ करते हुए भी
कभी जुदा नहीं हो पाते,
बारिश जिस से हम भागते फिरते
काँच और पत्थरों के नीचे आसरा तलाशते हुए
हम दावा करते – ज़िन्दगी कहीं और है।

बारिश, धूसर रँग की
जैसे उदासी आसमान से बरस पड़ा हो,
और आधी रात की ज़ालिम बारिश
जो रात भर गश्त लगाते मेहनतकशों के
दिलों को काटती
सर्दी के ज़र्द टुकड़ों में।

बारिश जो हमें हमारी हदों में रखती,
छतों पर लगातार बजते ढोल
हमें ललकारते, अहसास दिलाते
कि हम आख़िर कौन हैं।

इसी बारिश में
मेरे पिता भीगते थे
और दादा भी, मेहनत के पसीने में
इन्हीं बीहड़ सड़कों पर
जो इन दिनों बदल गई है शहर में।

यह बारिश, जो अब फ़सल बनकर नहीं उगती
उड़ती रहती है लगातार;
ज़मीन में दबी हमारी पुरखों की शक्लें
अब दिखलाई नहीं पड़ती

हम अक्सर भूल जाते हैं
बारिश बिलकुल आज़ाद बरसती है
चली जाती है किसी भटकते दूर आसमान की तरफ़
हमें यहीं अकेला छोड़कर।

इस बारिश में बहते हुए हम घुल-मिलकर बन जाएँगे
पत्थर की तरतीबें
बारिश आती रहेगी लगातार
साल दर साल, और बचा रहेगा
बारिशों का यह शहर।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सौरभ राय