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बालगीत / रुडयार्ड किपलिंग / तरुण त्रिपाठी

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हमारी जन्मभूमि, तेरी खाते हैं कसम
अर्पित हैं तुझे हमारा प्यार और श्रम
आने वाले सालों में जब होंगे हम बड़े
निज कुलों के नर-नारी में होंगे जब खड़े

स्वर्ग के परम पिता जो देवे सबको प्यार
मदद करो बेटों की, ओ, सुनो जब पुकार
कि पीढ़ी-पीढ़ियों तक वे बनाये रख सकें
धरोहर जो मौलिक और बेदाग रहे

यौवन में ये बीड़ा लें सिखाना हमें
पूरी दृढ़ता और सच के साथ में
कि, हमारे समय में, तेरी कृपा से मिले
सत्य, कि जिससे वतन सदा खिले

अपने लिए सदा हम कर सकें तय
दिन-रात संयम और नेकी से भरै
पड़े जो ज़रूरत तो हम कर सकें
कि कोई व्यर्थ निष्फल बलि नहीं होने दें

सिखाना हमें कि सारी विफलता में हम
तेरा निर्णय सुनें, अपने दोस्तों को कम
कि हम, तेरे साथ, चल सकें बेफ़िकर
भीड़ हो या पक्ष में या होवे उसका डर

जो न कर्म में या सोच में भी चाह सके
वो सिखाना बल हमें, कि निर्बल पे ना बरसे
कि, तेरे अधीन, हम में हो शक्ति वो
आदमी के दुखों में सुकून देवे जो

छोटी-छोटी चीज़ों में सिखाना हमें सुख
खुशी रहे, हो जिसमें किसी का न दुख
क्षमा तत्पर हो, सारी गलतियों के लिए
प्यार हो जहाँ में सभी लोगों के लिए

हमारी जन्मभूमि, हमारी श्रद्धा, अभिमान
जिसके प्यार की ख़ातिर हमारे पूर्वज दिए प्रान
ओ जन्मभूमि, तुझे अर्पित हैं किये
बुद्धि, हृदय और श्रम आगत सालों के लिए