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बाल कविताएँ / भाग 9 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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लाल बुझक्कड़ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’




रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


खेल- गीत


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


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अक्कड़- बक्कड़

लाल बुझक्कड़ ।

सिर पर लादे

मोटा लक्कड़ ।

कभी सोचता

कभी दौड़ता ।

खूब उड़ाता

धूल व धक्कड़ ।

हँसकर बोले

सदा प्रेम से ।

मौज उड़ाता

बनकर फक्कड़ ।

…………………………

मेरे मामा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ 




रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


बाल -कविताएँ


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


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मेरे मामा

          बिल्कुल गामा ।
 पहने कुर्ता
    और पजामा ॥

बड़े सवेरे

हैं जग जाते ।

पाँच मील तक

बीसों केले

और चपाती ।

एक बार में

चट कर जाते ॥
मेरे मामा

अच्छे मामा ॥


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गुड़िया रानी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ 




रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


बाल -कविताएँ


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


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मेरी भोली गुड़िया रानी

सुनती मुझसे रोज़ कहानी।

आँखें नीली सुन्दर बाल

परियों जैसी इसकी चाल ।

बढ़िया जूते , कपड़े पहने

मेरी गुड़िया के क्या कहने