भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाल दोहे / गरिमा सक्सेना

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:32, 21 फ़रवरी 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

'अ' से बना 'अनार' है, 'आ' से मीठा 'आम' ।
जब बच्चों मन से पढ़ो, तब तो होगा नाम॥

इमली में छोटी 'इ' है, 'ई' से होती ईख।
पुस्तक अच्छी मित्र है, ले लो इनसे सीख॥

'उ' से पढ़ो उलूक सभी, 'ऊ' से पढ़ लो ऊन।
वर्ण-ज्ञान जिसको नहीं, उनका जीवन सून॥

'ए' से बनती एकता, 'ऐ' से ऐनक गोल।
ओ से पढ़ लो ओखली, शिक्षा है अनमोल॥

औरत 'औ' से सीख लो, 'अं' से है अंगूर।
वर्ण 'अ' से 'अ:' तक सभी, स्वर हैं, रटो ज़रूर॥