बाहर-बाहर मेला है।
भीतर बशर अकेला है।।
उसके जैसा और कहाँ,
वह सबसे अलबेला है।।
सत्ता ज्यों ही हाथ लगी,
भाई खुल कर खेला है।।
थाने से न्यायालय तक,
नियमों की अवहेला है।।
अब जीवन में लुत्फ कहाँ,
बस यादों का रेला है।।
ज्ञान गुरु बाँटें किसको,
पीठाधीश्वर चेला है।।
अच्छी ग़ज़ल लगा कहने,
उसने इतना झेला है।।
इश्क नहीं आसान ‘मृदुल’,
इसमें बहुत झमेला है।।