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बाहर से दिखाने के लिए भीड़-भाड़ है / श्याम कश्यप बेचैन

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बाहर से दिखाने के लिये भीड़-भाड़ है
अंदर से वह मकान तो बिल्कुल उजाड़ है

साए के लिये सिर पे नहीं एक झाड़ है
लोगों की ज़िन्दगी यहाँ चटियल पहाड़ है

इन हादसों के दौर में मत ढूँढिए सुकून
सब के दिलो-दिमाग़ में बस मार-धाड़ है

सूखे से बच गए हैं तो डूबेंगे बाढ़ में
इस साल दुर्बलों के लिए दो आषाढ़ है

एकटक वो घूरते हैं फ़क़त आसमान को
उनकी नज़र में कोई न तिल है न ताड़ है