Last modified on 2 फ़रवरी 2011, at 17:18

बा और बापू / सुमन केशरी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:18, 2 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन केशरी |संग्रह=याज्ञवल्क्य से बहस / सुमन के…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चलते चलते आख़िर थक ही गई
इशारे भर से रोक लिया उसे भी
उस ढलती शाम को
जो जाने कब से तो चल रहा था
प्रश्नो की कँटीली राह पर
नंगे पाँव

नियम तोड़ रुक गया वह
भीग गई आत्मा
लहलहाई
कोरों पर चमकी
यह जानते हुए भी
कि देह भर रुकी है उसकी
शय्या के पास
मन तो भटक ही रहा है
किरिच भरी राहों पर
उन प्रश्नों के समाधान ढ़ूँढ़ता
जो अब तक पूछे ही न गए थे...