भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिछुरे मग जाती सँघाती / तोष

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:56, 3 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तोष }} <poem> बिछुरे मग जाती सँघाती मिली चख चाति कै ध...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिछुरे मग जाती सँघाती मिली चख चाति कै धार सवाती मिली ।

रसना जड़ की सरसाती मिली चित सूम को सोन की थाती मिली ।

जड़ बूड़ति नाव सोहाती मिली बिरहा कतलान की काती मिली ।

कहि तोष सबै सुख पाती मिली सजनी पियपानि की पाती मिली ।


तोष का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।