भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिटिया मलाला के लिए-3 / अनिता भारती

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:41, 13 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिता भारती |संग्रह=एक क़दम मेरा ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुन रही हो बिटिया मलाला?
सारी आवाम रोते हुए कह रहा है ----
‘ओ प्यारी मलाला,
हम बड़े रंज में हैं

सुनो, बिटिया मलाला!
तुम्हारे जैसी हजारों बच्चियाँ
तुम्हारे लिए निकाल रही हैं
कैंडल मार्च
और सुनो, बिटिया मलाला!
मौलवी भी कर रहे हैं
तुम्हारे लिए दुआ की बरसात,
देश की सीमाओं से परे
उठ रहे हैं हाथ
तुम्हारी सलामती के लिए।

सुन रही हो, बिटिया मलाला!
अभी-अभी हमसे दूर गयी है
‘आरफा करीम रंधावा’
नहीं खो सकते हम तुम्हें

सुनो, मलाला बिटिया!
इन जंगली गिद्धों ने जबरन
बंद कराये थे
जो चार सौ स्कूल
उनकी नई चाभी खोजनी है तुम्हें
क्योंकि ये फ़क़त स्कूल नही
ये रोशनी की वे मीनारें है
जिस पर चढ़ना है
तुम्हारी नन्हीं सहेलियों को
जहाँ से नीचे झांकने पर
दुनिया के तमाम बदनुमा धब्बे
और ज्यादा साफ दिखायी देने लगते हैं
और उनसे लड़ना
ज्यादा आसान हो जाता है

सुनो, मलाला,
तुम भारत की नन्हीं
सावित्रीबाई फुले हो
वह भी चौदह साल की उम्र में
निकल पड़ी थी
दबी कुचली औरतों के लिए
उन स्कूलों के ताले खोलने
जिन्हें जड़ रखा था
धर्म, जाति की सत्ता में चूर
सिरफिरों ने

सुनो मलाला, सुनो सावित्री!
कितने नीचे गिर गए है
वो लोग
जो स्कूल जाती लड़कियों के
सिरों पर गोली मारकर
उन्हें हमेशा के लिए
फना करना चाहते हैं
कितने क्रूर हैं वो लोग
जो आगे बढ़ती स्त्री को
गोबर पत्थर लाठी डंडे
कोडों से मार रहे हैं

पर सुनो गिद्धों!
तुम्हारे कहर के बावजूद चिड़िया
जरूर उड़ेगी
और हर बार उसकी उड़ान
पहली उड़ान से ऊंची होगी...