ओ मलाला,
क्या तुम जानती थी ...
हमको इल्म महज इल्म
की तरह सीखना होता है
बस एक छोटे दायरे को छूना होता है
कैसे हंसे कैसे संवरे
कैसे परिवार की बेल को बढायें
कैसे आने वाले मौसम को
खुशगवार बनायें
पर मलाला,
तुम सच में बहुत समझदार निकली..
तुम तो सच में ही
इल्म को इल्म की तरह
पढ़ने लगीं
और उस पर कुफ्र ये किया कि
दूसरी अपनी जैसियों को
इल्म बाँटने चली
ओ शाबाश बच्ची मलाला...
तुमने अच्छा किया
देखो, अब जो चली हो
चलती जाना
बिल्कुल नहीं रुकना
पीछे देखो
कितनी चिंगारियाँ
भभककर जल उठने को तैयार हैं...