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बिना तेल के दीप जलता नहीं है / संजय कुमार गिरि

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बिना तेल के दीप जलता नहीं है।
उजाले बिना काम चलता नहीं है।

बिना रोज़गारी कहाँ घर चलेगा,
न हो ये अगर पेट पलता नहीं है।

दिखाते रहे रात दिन झूठे सपने,
कभी बात से हल निकलता नहीं है।

सुलाता रहा रात भर भूखे बच्चे,
मगर दुख का सूरज ये ढलता नहीं है।

कहे बात संजय सभी के हितों की
ग़लत बात पे वो मचलता नहीं है।