भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिना मूंछों वाली बिल्ली / रित्सुको कवाबाता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: रित्सुको कवाबाता  » बिना मूंछों वाली बिल्ली

मैं बन जाती हूँ बिल्ली
दिन में एक बार !
चेहरा नीचे ,
हथेलियाँ फर्श पर ,
मैं तानती हूँ अपनी बाहें .
मैं बन जाती हूँ समुद्री शेर
'उठाकर अपने नितम्ब
मैं डालती हूँ सारा भार पीछे को .
मैं बन जाती हूँ एक ऊंट
बाहें पसारे
छूती है थोड़ी फर्श .
मैं सचमुच की बिल्ली नहीं हूँ ,
मेरे नहीं है बिल्ली सी मूंछ
लेकिन मैं बड़ी खुश हूँ ,
सोचकर की मैं बिल्ली हूँ ..
म्याऊं ....!

अनुवादक: मंजुला सक्सेना