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बिन आँखों के सपने / निदा नवाज़

वे आज बहुत ख़ुश
देखाई दे रहे थे
और एक-एक से कह रहे थे
कि वे अपने पड़ोसियों से
सुनहरे सपने ख़रीद लाए हैं
लेकिन वे अभी तक नहीं जान पाए थे
कि सुनहरे सपनों के बदले
वे गिरवी रख चुके थे
अपनी आँखें
और अपने बच्चों की नींदें.