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बिलकुल हारे / श्रीप्रसाद

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अक्कड़-बक्कड़ बंबे भो
अस्सी नब्बे पूरे सौ
सौ-सौ मच्छर काट रहे हैं
चीख रहे हैं चाचा जी
कभी मारते हैं गुस्से में
आकर एक तमाचा जी
मगर भाग जाते हैं मच्छर
चाचा गुस्साते हैं जी
कहते हैं, शैतान कहीं के
काटे ही जाते हैं जी
तभी गाल पर बैठा मच्छर
कसकर चाँटा मारा जी
मच्छर भागा, लाल हो गया
गाल उन्हीं का सारा जी।

मन को मार सो गए चाचा
करते क्या बेचारे जी
सचमुच मच्छर शैतानों से
वे हैं बिलकुल हारे जी।