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बिलाई भगतिन / रामदेव द्विवेदी ‘अलमस्त’

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बिलाई भइली भगतिन आसन जमा के।।
उज्जर चदरिया के ओढ़ि रामनामी
माथा पर मछरी के भसम रमा के
घोंघन के चुनि-चुनि माला बनवली
गवें-गवें फेर लगली दुम सुटुका के।।
बिलाई.....
एक दिन मूसन के मीटिंग बोलवली
गाँव का बगइचा में मंडप रचा के।
एने-ओने ताकि-तुकि आँख मटकवली
भाखन के तोब दिहली छोड़ सरिया के।।
बिलाई.....
‘हम हईं रे बबुअन ! तोहनी के नानी
न भावे बात पूछ पुरखन से जाके।
तेहन कारन हम भइनी जोगिनिया
रोज फरहार करीं गंगा नहा के।।
बिलाई.....
तबहूँ ना बात मान तोहन ए मुअनूँ
हमरे के वोट दे द एक-एक गिना के।
चूहन का वोट से बिलाई भइली रानी
लगली सिकार खेले घर में समा के।।
बिलाई.....
गवें-गवें चूहन के चट करे लगली
लिहली फुलाए पेट सय चूहा खा के।
आखिर में एक दिन फूटल भंडा
बँड़वा नचोर लिहलसि मुँह खिसिया के।।
बिलाई.....
केहू धइलसि अहुँचा, केहू धइलसि पहुँचा
होखे लागल भगतिन के सेवा बना के।
जनता ना मानेला कहला से भइया
आखिर में दम लेला सरगे ठेक के।।
बिलाई.....