भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीच ही समुन्द्र कोसी माय / अंगिका

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:18, 23 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=अंगिका }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बीच ही समुन्द्र कोसी माय
बोदिला भासल जाय हे
सोलह हाथ के सड़िया हे कोसी माय
बन्हि लेलोॅ हे
हेलिए गेलोॅ बीचला हे समुन्द्र हे
हेलिए जे डुबिए हे कोसी माय
बोदिला उपर कइलें
से हो बोदिला मांगे छअ बिआह हे
हमें तोरा पुछिओ रे बोदिला
जतिया ते ठेकान रे
तहूँ मांगे हमरों से बिवाह रे
हमहूँ जे छिकिये गे कोसिका
ओछि जाति चमार हे
हमें मांगियो तोरो से विवाह हे
कथी ले खियोलियो रे बोदिला
दूध भात कटोरबा रे
पोसि-पालि कइलियो जबान रे
तहूँ जे कइलें रे बोदिला
जातियो कुल हरण रे ।