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बीजड़ा / निलय उपाध्याय

मेघ भरे आसमान के नीचे
हमें प्यार की चुटकी से निकालो
हम बीजड़े हैं
धान के

हाथ को
ज़रा-सा हवा मे लहराओ
और रोप दो कहीं भी
जीवन में

बारिश के बाद
लोकगीतों की लय पर
लोट-पोट हुई मिट्टी
सिर्फ़ हमारा इन्तज़ार करती है..

हमे आलिंगन में जकड़ेगी
खड़ा करेगी
और महज दो दिन मे
चलना सिखा देगी नमी

हवा
हाथ फेरेगी हमारे जुल्फ़ों में
हमे पालने में झुलाएगी

रोज़ आकर बतियाएगी हमसे
सूरज और चाँद की किरणें

देखते देखते
जवान हो जाएँगे हम

कंछा फेकेंगे
मुट्ठियो में नहीं समाएँगे
जब मुड़ेंगे फलियों की ओर

धूप भरे आसमान के नीचे
हमे प्यार की चुटकी से निकालो
और रोप दो कही भी
जीवन मे

हम बीजड़े हैं
गाँव के ।