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बीज वृक्ष / शमशाद इलाही अंसारी

उस भयावह अंधेरी रात में
काले बादलों से आकाश
अट गया था
मूसलाधार झमाझम भीषण वर्षा
प्रलय सूचक चमकती बिजली
एक के बाद एक तेज़
धारदार, प्रचण्ड हवाओं का वेग
जंगल पर टूट पडा़
बेदर्द वर्षा की बडी़-बडी़/मोटी-मोटी बूंदें
एक-एक पत्ते की कमर तोड़ती हुई
दैत्यकारी बेलगाम हवाएँ
हर वृक्ष की एक-एक भुजाओं को
मरोड़ने को आतुर
निर्जर वृक्षों के तने
एक के बाद एक
भयकंर चीखों के साथ टूटते

इस विराट क्रंदन से
पूरा जंगल अवाक था, स्तब्ध था, भयातुर था
बिजली,पानी,हवा, अंधकार
बादल और वेग
इन सब तत्वों के संश्रय
समस्त अस्त्रों से युक्त
एक अपराजित शक्ति बनकर
बिना किसी पूर्व-चेतावनी के
टूट पडे़ थे
अपने युध्दोंमादी प्रचण्ड प्रवाह के साथ
निशस्त्र,निरिह वन पर।

आकाश से बहती लगातार भीषण
जलधारा ने वृक्षों की
जडो़ं को पोला कर दिया था
फिर-फिर गोलबन्द होकर आते
हवाओं के बवण्डर
उनकी पुनरावृति
मानो, प्रतिबध्द हो
पूरे जंगल को नष्ट करने को
निरकुंशता से रौंद डा़लने को
सहमे,ड़रे वृक्ष
आकाशीय विपदा से भुजके
अघोषित युध्द की वर्जनाओं से दुबके,
प्रतिकार करते
खु़द को बचाते
फ़िर दूसरे की रक्षा करते
अपने तने से तना लगाकर
सहारा लेते-देते वृक्ष
उस तूफ़ानी रात का
रात भर प्रतिकार करते हैं
निशस्त्र प्रतिकार!

युगों समान दीर्घ रात्रि बीती
पौ फ़टी, बादल छ्टे, बंद हुई गर्जना, थमा पानी
अंधकार हटा,तूफ़ान बीता
अस्त-व्यस्त जंगल के वृक्षों ने
अपनी और आस-पास की सुध ली
रात भर बीती त्रासदी के बाद
किसको कितनी हानि हुई
इसका विश्लेषण किया
सूरज जब चढ़ा
रात भर के नुकसान की परतें खोलता गया
असंख्य वृक्ष उखड़ गये थे
असंख्य घायल हुये-अपंग हुये
भूमि पर बिछ गई थी
पत्तों की मोटी चादर।

प्रारंभिक उपचार-विचार के बाद
परस्पर सहमति बनी- कि
बीज वृक्ष के पास जाया जाये
इस विपदा से उपजे प्रश्न
उनका हल-समाधान पूछा जाये
जो जिस हाल में था
जैसा भी था
बीज वृक्ष की ओर
बढ़ने लगा-घिसटने लगा
बीज वृक्ष इस महा-वन के
ठीक केन्द्र में था
लुढकते-सरकते, घायल वृक्ष
वन मे चारों कोनों से
विशाल, विराट, भव्य बीज वृक्ष की दिशा में अग्रसर थे
वह इस वन का सबसे पुराना वृक्ष है
सबसे वृद्ध, प्रबुद्ध
सबसे कुशाग्र, बुध्दिमान और संभवतः
सबसे शक्तिशाली भी।

उसने बुद्ध को भी देखा था
महावीर को भी
तब वह छोटा था
उसने कई काल देखे
वह कालजयी है
समस्त कालों का एक मात्र दृष्टा
जंगल के कोने-कोने से
समस्त वृक्ष-गण वहाँ
एकत्रित हुए
सब वृक्ष गत्‌ रात हुए विध्वंस का
कोई समाधान चाहते थे।

वृद्ध बीज वृक्ष
जिसने इस वन को जन्म दिया था
बड़े परिश्रम से इसे पल्लवित किया था
इस संहार को देख
वह भी बहुत व्यथित था।

बीज वृक्ष बोला:
जीने के लिये क़द में ऊँचा होना
आवश्यक नहीं
सुडौ़ल, सौष्ठव और गोल होना चाहिये।

विस्तार भूमियोत्तर नहीं
अंतर-भूमि होना चहिये।

अपनी जडों को भूमि के भीतर
विस्तार में गाड़ दो, दूर और दूर तक ले जाओ उसे
पृथ्वी के ऊपर दूर-दूर नहीं
पास-पास रहो
जितना अंतर कम होगा
उतने तुम शक्तिशाली होंगे
वृक्ष की किसी जाति विशेष से बैर न करो
सबको उगने दो, खिलने दो
इतना नज़दीक कि,
आवश्यकता पड़ने पर परस्पर
सहयोग मिल सके
संदेश सूत्र के साथ
बीज वृक्ष की सभा समाप्त हुई।

बीज वृक्ष की चारों दिशाओं में
उसकी विशाल भुजाएँ फ़ैली थी
भुजाओं से होकर उसकी जटाएँ
भूमि में धँस चुकी थी
वह जितना वृद्ध होता जाता
उसकी भुजाएँ और बढ़ती जाती
और नई जटाएँ बन जाती उसके
नये रक्त संचार का स्रोत
वह अपना समस्त भार
धरती के भीतर
भिन्न-भिन्न स्थानों से
भुजाओं से
जटाओं से बाँटता रहता
जितना वह भूमि के ऊपर था
उससे बडी़ उसकी जडे़ थी
भूमि के भीतर,
उसकी छाती में
जहाँ वह
चिरकाल से खड़ा था।

भारत में जारी नव-जनवादी संघर्ष के दौरान शहीद हुए साथियों को समर्पित
 

रचनाकाल: 15.09.2009