http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A5%87_%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A4%B2_%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6_%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A5%87_/_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%AF%E0%A5%80&feed=atom&action=historyबीते सभी पल याद आये / सुनीत बाजपेयी - अवतरण इतिहास2024-03-29T08:43:50Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A5%87_%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A4%B2_%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6_%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A5%87_/_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%AF%E0%A5%80&diff=265400&oldid=prevसशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीत बाजपेयी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2019-07-21T14:57:14Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीत बाजपेयी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=सुनीत बाजपेयी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
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{{KKCatGeet}}<br />
<poem><br />
कल गया जब मैं बहुत दिन बाद अपने गाँव फिर से,<br />
प्रिय तुम्हारे साथ में बीते सभी पल याद आये।<br />
<br />
किन्तु अबके बार था बदला हुआ हर इक नजारा।<br />
शान्ति थी पहले वहाँ पर शोरगुल है ढेर सारा।<br />
खेलते थे हम जहाँ छप्पर पुराना ढह गया है,<br />
सूख कर सिमटा दिखा बड़की तलैया का किनारा।<br />
नीम घर के सामने वाला भले ही कट चुका पर,<br />
हो गए हैं अब बड़े वो पेड़ जो तुमने लगाये।<br />
प्रिय तुम्हारे साथ में बीते सभी पल आये।<br />
<br />
बाग़ में भी क्या बताऊँ इस दफा मुश्किल बड़ी थी।<br />
तुम नहीं थीं साथ पर बरात यादों की खड़ी थी।<br />
बैठ कर घंटों जहाँ हम प्रेम की पींगें बढ़ाते,<br />
उस जगह पर लाश उन लम्हात की बिखरी पड़ी थी।<br />
याद है तुमको, खिलाता था स्वयं ही तोड़कर के,<br />
कल उसी जामुन तले रोते रहे फिर लौट आये।<br />
प्रिय तुम्हारे साथ में बीते सभी पल याद आये।<br />
<br />
वो गली जिसमें बना था घर तुम्हारा और मेरा।<br />
सिर्फ सन्नाटा मिला डाले वहाँ अपना बसेरा।<br />
पास जीने के बना कमरा व्यथित होकर मिला कल,<br />
शाम को मिलते जहाँ हम रोज होने पर अँधेरा।<br />
आज तक समझा नहीं ये मैं गया छत पर कभी जब,<br />
आ गयीं हर बार ऊपर किस तरह तुम बिन बुलाये।<br />
प्रिय तुम्हारे साथ में बीते सभी पल याद आये।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५