भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बीत चला है जाने क्या क्या / सुरेखा कादियान ‘सृजना’
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:23, 18 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेखा कादियान 'सृजना' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बीत चला है जाने क्या क्या
और थमा है जाने क्या क्या
हाथ बढ़ाकर दे भी देता
छीन लिया है जाने क्या क्या
पल भर तो मुझको सुन लेता
बोल गया है जाने क्या क्या
हँसती हैं जो आँखें उनमें
दर्द छुपा है जाने क्या क्या
खुद को तो तू जान न पाया
ढूंढ रहा है जाने क्या क्या
कल के थोड़े सुकूँ की खातिर
आज सहा है जाने क्या क्या
धुंआ धुंआ है आलम सारा
रात जला है जाने क्या क्या