भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुझौवल- खण्ड-8 / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

71
पानी जेकरोॅ कैलोॅ-कैलोॅ
सौ-सौ मुँहोॅ के एक्के घैलोॅ ।
-मधुमक्खी छत्ता
72
दू बित्ता में गर्दन आवै
पाँजोॅ भरी में पेट
गद्दी पर सें कभी नै उतरै
भरलो पेटें हेट ।
-घैलोॅ
73
पोता बाबा गोद नुकैलै
सब नजरी सें डरी-डरी
चाँदी के बाटी में पोता
दूध पियै छै भरी-भरी ।
-नारियल
74
पर्वत ऊपर घास जमैलोॅ
पर्वत तर संगमरमर
संगमरमर के नीचें कुइयाँ
जै नै बुझै, ऊ बानर ।
-नारियल
75
चारो दिश जंगल घनघोर
जैमें बैठलोॅ कारोॅ चोर
चोर हेनो-नै लूटै-पाटै
बैठलोॅ-बैठलोॅ चुट्टी काटै ।
-ढीलोॅ
76
दोनो कान अमैठै जेन्हैं
दुनियाँ साफ दिखावै तेन्हैं ।
-चश्मा
77
कारोॅ वन में कारोॅ तिल
जे बीया नै जेकरोॅ बिल
घूमै मौजोॅ-मस्ती सें
बची पुलिस के गश्ती सें
जों पकड़ैलोॅ चोरी में
मारले जाय बरजोरी में ।
-ढीलोॅ
78
गोड़-हाथ, देह-मुण्डी नै छै
भले नै बोलै, ऊ बूलै छै ।
-जोंक
79
बित्ता भर के सनसनाठी
कुकड़ै तेॅ औंगरी भर काठी
-जोंक
80
दू गोड़ोॅ के बीच्हौं गोड़
सौसें देह में बीसो जोड़
दू हाथो छै, मुड़िये गैब
आपने चलै नै, यहेॅ ठो ऐब ।
-साइकिल