भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुढ़ बरगदवा / सुभाष चंद "रसिया"

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुढ़ बरगदवा पीपल के मीठा छउवा।
हे बबुनी निक बा शहरिया से गऊवा॥

होत भिनुसार बोले टिकवा चिरैया।
झुरू झूरू बहेला पवन पुरवइया।
केतना सुहावन बा बाबा के मड़उवा॥
हे बबुनी निक बा शहरिया से गऊवा॥

देसी फ्रिज बाटे माटी के घरिलवा।
पनिया पियावे छोटका होरिलवा।
मन्द पवन से थिरकेला पऊवा॥
हे बबुनी निक बा शहरिया से गऊवा॥

हरियर बगिया में खिलल सुमनवा।
खिल गइले कालिया सगरी अंगनवा।
केतना मनोहारी बा नीमिया के छउवा॥
है बबुनी निक बा शहरिया से गऊवा॥

केतना प्रदूषण बा तोहरी शहर में।
रहल मोहाल बाटे अपनी ही घर मे।
रसिया के भवेला पीपरा के छऊवा॥
हे बबुनी निक बा शहरिया से गऊवा॥