दूर हूँ, बहुत दूर
ख्वाहिस कर के भी नहीं छू सकता
मैं इम्कानात के उफ्क को ।
पार कर नहीं सकता
जिन्दगी के मुस्किल पुलों को ।
दब गया हूँ
गुम्बद-ए-मातम के निचे।
अँधियारा गया है लुम्बिनी ।
आँखो में
सिर्फ ख्वाबेँ तैर रहे हैँ अमन के ।
जिस लम्हा तुम ने
इमान को दफना दी
बेइमानी के कब्रस्तान पर,
उसी लम्हा हो गयी है मौत
मेरे बुद्ध की ।