भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुरा आदमी / बालकृष्ण काबरा 'एतेश' / लैंग्स्टन ह्यूज़

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:22, 27 नवम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लैंग्स्टन ह्यूज़ |अनुवादक=बालकृ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं हूँ बुरा, बुरा आदमी
क्योंकि हर कोई मुझे कहता यही।

मैं हूँ बुरा, बुरा आदमी
हर कोई मुझे कहता यही।
अपनी क्षुद्रता, अपनी शराब ले जाता
जहाँ भी मैं जाता।

मैं पीटता अपनी पत्नी को
मैं पीटता अपनी रखैल को भी।

पीटता अपनी पत्नी को
पीटता अपनी रखैल को भी।
पता नहीं क्यों करता मैं ऐसा
किन्तु यह रखता दूर मुझे दुख से।

मैं हूँ इतना बुरा कि मैं
होना ही नहीं चाहता अच्छा।

बुरा, मैं इतना बुरा
कि होना ही नहीं चाहता अच्छा।
मैं जा रहा हूँ शैतान के पास
यदि जा भी सकूँ तो नहीं जाऊँगा स्वर्ग।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’