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टूटी पड़ी हैं गुंचों की सारी गुलाबियाँ
तुझ रुख़ पे ता ता1 निसार करें मेहरो-माह माह2 कोलबरेज़ लबरेज़3 सीमो-ज़र ज़र4 से हैं दोनों रकाबियाँ
सैयाद, कह तो किनने कबूतर को दाम दाम5 मेंसिखलाइयाँ हैं दिल की मिरे इज़्तराबियाँइज़्तराबियाँ6
ज़ाहिद, हमारे कहने से जो तू पिए शराब
मिसरी की दें मँगा के तुझे हम गुलाबियाँ
फ़रहादो-क़ैस वूँ क़ैस7 वूँ8 गये, 'सौदा' का है ये हालक्या-क्या किया हैं इश्क़ ने ख़ानाख़राबियाँख़ानाख़राबियाँ9
'''शब्दार्थ:
1. ताकि 2. सूरज-चाँद 3. भरी हुई 4. चाँदी और सोना 5. जाल 6. बेचैनियाँ 7. फ़रहाद और मजनूँ 8. उधर, उस तरह 9. इश्क़ ने क्या-क्या घर बरबाद किए हैं
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