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बुलबुल: एक प्रभाव / अरविन्द घोष / कुमार मुकुल

पेडों के मध्‍य से आती बुलबुल की धीमी आवाज
सन्‍नाटे का कत्‍ल करती एक उल्‍लसित आह
इस सोती रात्रि में कितनी साफ, बातूनी
और कैसी विविध जैसे मीठे जल की धार
एक नन्‍हे सुरंग में गूंजता स्‍वर
हल्‍की-भूरी दीवार के नीचे
फैली डोलती सरसों के बीच गाती है वह
ओ रात्रि की मोहिनी कब्रगाह
ओ स्‍टार्टे के संन्‍यासी
पवित्र उल्‍लास में कांपती हरेक पत्‍ती
ओह , तुम्‍हारी लोरी से खुशनुमा होता रात की हवा का एक झोंका।