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बुलबुल / अलेक्सान्दर पूश्किन / हरिवंश राय बच्चन

ओ गुलाब की कली कुमारी,
मुस्कानों में क्या बन्धन ?
लतिकाओं में अटका रखतीं
यद्यपि तुम बुलबुल का मन ।

बन्दी बन, वह शरण तुम्हारी;
कर लो तुम इस पर अभिमान,
अन्धकार में दूर-दूर, पर,
गूँजा करता उसका गान !
 
अँग्रेज़ी से अनुवाद : हरिवंश राय बच्चन