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बूंद / गौतम अरोड़ा - अवतरण इतिहास
2024-03-29T09:47:14Z
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आशिष पुरोहित: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=थार-सप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
2017-06-09T12:29:17Z
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<p><b>नया पृष्ठ</b></p><div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=पवन शर्मा<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=थार-सप्तक-1 / ओम पुरोहित ‘कागद’<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
{{KKCatRajasthaniRachna}}<br />
<poem><br />
ले आव,<br />
उछालां भाटौ,<br />
करां आभै बादळी खाडो,<br />
काढण नै हिस्सै रो पाणी,<br />
थूं हाथ दे, म्हैं देवूं हूंस।<br />
मत देख,<br />
आभै अर थारै बिच्चै रै आंतरै नै <br />
मत भूल, <br />
थारै अर म्हारै बिच्चै भी हो पीढ़ीयां रो आंतरौ,<br />
अर ऊभा,<br />
आज एक जमीं, एक काज सारू<br />
थूं, पीढीयां तिरसो <br />
अर म्हैं, उणरै पाणी सूं बेराजी <br />
थूं, टोपो-टोपो तरसै <br />
अर म्हैं खिडांऊं उणरौ लोटो<br />
मत सोच, कर मन, उठा भाटौ <br />
ओ आभौ, आ बादळी <br />
थारै ईज सारू।<br />
हां मालकां <br />
सुक्कै हौठ, रीतै पेट <br />
म्है ऊभौ आपरी जमीं, खडूं उणनै <br />
जोऊं<br />
आपरै हाथ भरयै थाळ<br />
अर<br />
आभै री धोळी बादळी,<br />
मालकां <br />
ऊभा एक जमीं,<br />
पण आभै लम्बै आंतरै सागै <br />
म्हैं, जोवणी चावूं <br />
बादळी लारली दुनियां <br />
अर आप, कब्जै करणों चावौ आभौ <br />
म्है, चळू कर सोवण चाऊं<br />
अर आप, उडावणी चावौ नींद <br />
नीं मालकां नीं<br />
नीं सूंप सकूं औ आभौ<br />
बादळी सूं खोस अंधारै नै<br />
इण सारू ईज<br />
छोड कांकरो,<br />
लियो भाटौ हाथ<br />
खोदण नै जमीं <br />
काढूंला, म्हारै हौठां सारू,<br />
म्हारै हिस्सै री ‘बूंद’<br />
ऊंडै पाताळ सूं। <br />
</poem></div>
आशिष पुरोहित