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बूढ़ा किसान / हरिवंशराय बच्चन

अब समाप्त हो चुका मेरा काम।
करना है बस आराम ही आराम।
अब न खुरपी, न हँसिया,
न पुरवट, न लढ़िया,
न रतरखाव, न हर, न हेंगा।

मेरी मिट्टी में जो कुछ निहित था,
उसे मैंने जोत-वो,
अश्रु स्वेद-रक्त से सींच निकाला,
काटा,
खलिहान का ख्लिहाल पाटा,
अब मौत क्या ले जाएगी मेरी मिट्टी से ठेंगा।