भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बूढ़ा पेड़ / दिनेश देवघरिया

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:07, 14 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश देवघरिया |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चिड़ियों की गुदगुदाहट
घोंसलों में उनकी चहचहाहट
अब न रही।
अटूट-सा लगता
लताओं का प्यार
वल्लरियों से मेरा श्रृंगार
अब न रहा।
दु:ख-दर्द बाँटते
कुछ पल काटते
पर अपने से लगते
वे अनजान बटोही
अब न रहे।
मुझमें अब
मीठे फल जो नहीं लगते,
अब फूल नहीं खिलते,
तनों से अब
रस-धारें जो नहीं बहतीं,
अब मुझमें पत्तियाँ नहीं आतीं।
मैं सूख चुका हूँ।
अकेला रह गया हूँ
क्योंकि
बूढ़ा हो चुका हूँ।
बूढ़ा पेड़ बन चुका हूँ।