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बूढ़ा बरगद फिर हरियाया है / प्रदीप शुक्ल

सुनो, गाँव का
बूढ़ा बरगद
फिर हरियाया है
सुनी बतकही
हमने थी
कुछ नए परिंदों की
राजा ने भी फ़ौज लगाई
है कारिंदों की
उसके सपने में
शायद
कुलदेवा आया है

आशाओं के
नए नए
फिर किल्ले फूटे हैं
मजबूती के खम्भे भी
दिख रहे अनूठे हैं
परदेशी बादल ने
उस पर
जल बरसाया है

बाजों की
संख्या में लेकिन
कमी नहीं आई
एक हठीली चिड़िया देखो
फिर से चिचियाई
अभी
सगुन पंछी ने
कल ही नीड़ बनाया है
सुनो, गाँव का
बूढ़ा बरगद
फिर हरियाया है