भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बूढ़े पंखों का सहारा ले / अमित कल्ला

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बूढे पंखों का
सहारा ले
रंग
छिपे पहाडो तक
जा पहुचते

आप ही उत्त्पन
दिलासाओं के संग
सही - सही के
मायनों की दहलीजें
पार कर जाते हैं

हौले से ,
दौड़ते पानी की
रफ्तार माँप
काँच सी पोशाक
भिगो लेते

रंग
मांगे वाक्यों के
प्रतिबिम्बों में समाये
हाशियों को बिखेर ,
धकेलकर क्षितिज की देह

गहरे कोहरे को
मथने
कहीं और
निकल पड़ते ।

कुछ आहट
जरुर लगती है ।