भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बू-ए-गुल, रंगे-हिना, कुछ भी नहीं / शिवशंकर मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बू-ए-गुल, रंगे-हिना, कुछ भी नहीं
वादा-शिकवा, हाँ कि ना, कुछ भी नहीं
तू नहीं तो जमाने में क्या रखा
जिंदगी तेरे बिना, कुछ भी नहीं