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बेख़ुदी की एक दिन मुझको सज़ा दे जाएगा / सुरेन्द्र सुकुमार

बेख़ुदी की एक दिन मुझको सज़ा दे जाएगा
वो किसी दिन और जीने की दुआ दे जाएगा

दूर कब तक रह सकूँगा यार की गलियों से मैं
कोई नामावर कभी उसका पता दे जाएगा

कर रहा हूँ इल्तिजा आगोश में भर लूँ तुझे
मुस्कुराकर एक दिन अपनी रज़ा दे जाएगा

मैं नहीं हारूँगा — तूफ़ाँ हो भवँर हो या कि ज्वार
मेरा माँझी ही, भले, मुझको दग़ा दे जाएगा

कोई भी आए पयम्बर कुछ बदल सकता नहीं
ज़िन्दगी के वास्ते इक फ़लसफ़ा दे जाएगा