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बेटी से ही रिश्ता है / गुलरेज़ शहज़ाद

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बेटी से ही रिश्ता है
कांधे पर जो अपने रख के मैं
लोरी सुनाता हूं
सुलाता हूं तो मुझको ही
थपकती है मेरी बेटी
ख़ुदा से की गई इक रेशमी
मेरी दुआ है वो
"हुमा" है वो
दिल के आसमां पर
दुःख के बादल शोर करते हैं
कड़कते हैं
गरजते हैं
सितम की बारिशें जब
बेरहम बौछार करती हैं
ये दुनिया संगसारी की रिवायत
जब निभाती है
मेरा सपना लहू में तर ब'तर हो कर
बिलखता है
तब उजली मुस्कराहट
मेरे ग़म को चाट जाती है
नन्ही उंगलियों का लम्स
चेहरे पर उतरता है
तो दुःख के काले पत्थर
रेज़ा रेज़ा टूट जाते हैं
हक़ीक़त है कि दुनिया का
निराला हुस्न है बेटी
अगर बेटी नहीं होती
तो रिश्ते जन्म क्या लेते
अदा होती
हया होती
दुआ होती
ना हम होते
कि इस बेदीन दुनिया में तो
बस पत्थर सनम होते
जो बेटी है तो रिश्ता है
जो रिश्ता है तो
हम सब हैं
जो हम सब हैं तो
दुनिया है
जो दुनिया है
"हुमा" भी है
वफ़ा भी है
ख़ुदा भी है