भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेला महकते ही / नरेन्द्र दीपक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेला महकते ही तुम्हारी याद आ जाती
बिजली चमकते ही तुम्हारी याद आ जाती।

उठती घटाओं पर नहीं बहका कभी ये दिल,
बादल गरजते ही, तुम्हारी याद आ जाती।

सुमनों के इषारे भले मैं टाल दूँ लेकिन,
कलियाँ चटकते ही, तुम्हारी याद आ जाती।

कितना भी तड़प ले दिल नहीं परवाह मुझको,
आँसू छलकते ही तुम्हारी याद आ जाती।

ठण्डी फुहारें तो तड़प कर झेल लेता मन,
पानी बरसते ही तुम्हारी याद आ जाती।

पतंगों के मरण की कुछ नहीं परवाह ‘दीपक’
लौ के मचलते ही तुम्हारी याद आ जाती।