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बेवफाई को याद करती उदास है राधा / लक्ष्मीकान्त मुकुल

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अंधियारी रात में छत पर सोई राधा
चांद-तारों को निरखती याद करती है बंसी वाले को
जिस से मिलने वह चली आती नंगे पांव वृंदावन की बाग में
उसका स्नेहिल स्पर्श, छुवन, चुम्बन सब याद है उसे
मिलते ही मन में खिल जाते थे पोखरा किनारे के लाल पलाश
यमुना तीर पर खड़ी जामुन की फलियाँ
नंद गाँव के रास्ते में छाए भटकैया के फूल

याद करती हुई उदास हो जाती है राधा
शहर जाते ही कैसे बेवफा हो गया कृष्ण
उलझता गया नित नई सुंदरियों की इंद्रजाल में
मथुरा कि गलियों में उसे मिली जादूगरनी कुब्जा
जो फांस ली उसे कपटपूर्ण प्रेम-फांस में
कहीं कोठे वालियों, दरबार की नर्तकियों के
वृत में शामिल ना वह हो जाए कहीं
भंवर काटते हुए बिताने लगे अपनी जिंदगी

अचंभित है राधा देखती हुई बरसाना कि ऊंची पहाड़ियों को
चक्रवात की जोड़ें उड़ते हुए चले जा रहे थे उसकी ओर
सोचती है पहले प्यार, अपने पहले प्रेमी के विषय में
रुकमणी आदि पटरानियों के बस में कहाँ है कृष्ण का प्यार पाना
सच्चा प्यार तो वह ही पायी है
जब वह अमरूद की लचकती डाल की तरह थी नवयौवना में
जिसकी अभी साक्षी है जमुना कि लहरें
गोकुल की ओर से दिखता वंशीवट
हवा में सुरसुराती बांसुरी की मादक धुन।