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अनायास मुझसे ही क्यों
अवगत कराती हैं?
 
दिखलाती हैं विसंगतियां
शहरी चौराहों पर गाँवों की अल्हड़ियाँ,
भुच्च और बेढब
गंवई पनघटों पर नगरी मोहल्लों की
ढीठ और अलहदी ठिंगनी दुलारियाँ,
ठौर-ठौर, डांय-डांय क्वांरी महतारियाँ,
छोरी में छोरे और छोरों में छोरियां,
रंडों में रंडियां,
ब्लाउज और साड़ी में कराते और पाप वाली
शहरी रणचंडियाँ
 
लोफर और लुच्ची, लफंगी कहानियां
लाजवाब लहजे में जीभ लपलपाती हैं
कड़वाहट जीवन की खूब बकबकाती हैं
हंसती हैं, रोती हैं,
नाच-नाच गाती हैं
अंधों-अपाहिजों, यतीम लावारिसों
फक्कड़ों, भिखमंगों
के झुंडों में बैठकर
कहकहे लगाती हैं,
चुटकले सुना, उनके मन बहलाती हैं
उनकी लाचारियों पर आंसू बहाती हैं
हमदर्द होने का नाटक दिखाती हैं
 
मनहूस मौसमों में मसखरी कहानियां
औरताना तालों की मर्दाना चाभियाँ