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बेहतर दुनिया, अच्‍छी बातें, पागल शायर ढूंढ़ रहे हैं / नवनीत शर्मा

 

बेहतर दुनिया, अच्‍छी बातें, पागल शायर ढूंढ़ रहे हैं
ज़हरीली बस्‍ती में यारो, हम अमृतसर ढूंढ़ रहे हैं
 
ख़ालिस उल्‍फ़त,प्‍यार- महब्‍बत, ख़्वाब यक़ीं के हैं आंखों में
दिल हज़रत के भी क्‍या कहने ! बीता मंज़र ढूंढ़ रहे हैं
 
सीख ही लेंगे साबुत रहना अपनी आग में जल कर भी हम
दर्द को किसने देखा पहले तो अपना सर ढूंढ रहे हैं

ऐंठे जाते-जाते ही तो ख़त्म हुआ है आँख का पानी
अब जब शहर ने पीकर छोड़ा सब अपना घर ढूंढ़ रहे हैं
 
अपनी-अपनी जिनकी ज़रूरत, अपनी उनकी कोशिश भी है
झूठे, ख़ंजर ढूंढ़ रहे हैं , सच वाले , दर ढूंढ़ रहे हैं
 
क्या जाने ये वक़्त किसे कब क्या मंज़र दिखला देता है
बावड़ियों को पीने वाले मिनरल वाटर ढूंढ़ रहे हैं
 
याद तुम्हें जब करता हूँ तो समझाते हैं मुझको पर्वत,
‘सदियों से सब सह कर भी हम अपना अंबर ढूंढ़ रहे हैं’