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बेहतर मनुष्य बनने के लिये दवाएँ / देवी प्रसाद मिश्र

मैंने खाँसी के लिए दवा ख़रीदने के बाद केमिस्ट से यह कहा कि
बेहतर मनुष्य बनने के लिए दवाएँ नहीं हैं तो उसने मुस्कुराते हुए कहा कि
एक लेटेस्ट स्कीम में कण्डोम के साथ इच्छाएँ मुफ़्त है मैंने कहा कि
कवि इच्छा और स्वप्न के संस्मरण हैं उसने फुसफुसाते हुए कहा कि जो फ़िल्म
पास के थियेटर में चल रही है उसमें पेड़ में पानी डालने का कोई दृश्य नहीं है
और रात के शोक के बाद थियेटर से जो निकले वे कह रहे थे कि मारना एक कला है मैंने बहुत डर से कहा कि जो फ़ोन मैंने भतीजे से बात करने के लिए लगाया था वह ईश्वर को लग गया