भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बैठे हैं दो टीलें / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 16: पंक्ति 16:
  
 
:दूर-दूर सड़क के किनारे पर
 
:दूर-दूर सड़क के किनारे पर
सूखे पत्तोख मे धुंधुआते से ढेर,
+
सूखे पत्तो के धुंधुआते से ढेर,
 
:एक तरफ़ बैठे हैं दो टीले
 
:एक तरफ़ बैठे हैं दो टीले
 
:गुमसुम-से पीठ फेर-फेर,
 
:गुमसुम-से पीठ फेर-फेर,

20:13, 21 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

तनिक देर और आसपास रहें
चुप रहें, उदास रहें,
जाने फिर कैसी हो जाए यह शाम।

एक-एक कर पीले पत्तों का
टूटते चले जाना, इतने चुपचाप,
और तुम्हारा पलकें झपकाकर
प्रश्नों को लौटा लेना अपने आप।

दूर-दूर सड़क के किनारे पर
सूखे पत्तो के धुंधुआते से ढेर,
एक तरफ़ बैठे हैं दो टीले
गुमसुम-से पीठ फेर-फेर,

डूब रहा सभी कुछ अन्धेरे में
चुप्पी के घेरे में
पेड़ों पर चिड़ियों ने डाला कुहराम।