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बै / पवन शर्मा

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बै आगीवाण
बै जाणी जाण
म्हे जाण अजाण
बै आवै
पण
उतरयां पाण
कै ब्याव-सावै
कै काण-मो’ काण
बै तो बै इज है
बां रो कांई
पण
म्हे नीं हां, बां री दांई
म्हारी ओळखाण
खूंटै कनै
खाली ठाण
म्है कैवां
जद आवै ताण
नीं छोड़ै
खोड़िळी बाण
ढळसी हाण
छूटसी कांई
बां री बाण-कुवाण।