Last modified on 18 फ़रवरी 2019, at 04:04

बोझ हो तो फिर तअल्लुक़ तोड़ देते हैं / विकास जोशी

बोझ हो तो फिर तअल्लुक़ तोड़ देते हैं
हम कहानी यूं अधूरी छोड़ देते हैं

जब कभी हमको लगी बोझिल किताबों सी
कुछ वरक़ हम ज़िन्दगी के मोड़ देते हैं

वो निगाहों से पिलाएं तो ये वादा है
हम क़सम सारी पुरानी तोड़ देते हैं

पी के जितनी मय बहकने तुम लगे हो ना
हम तो उतनी ही लबों पे छोड़ देते हैं

जो किसी भी काम के ना थे ज़माने में
रुख हवाओं का वही तो मोड़ देते हैं

गुफ्तगू हमसे जो करता है मुहब्बत की
दिल हमारा हम उसी से जोड़ देते हैं

कुछ सज़ा उनके लिए भी तो मुक़र्रर हो
दोस्त बन के जो भरोसा तोड़ देते हैं

दोस्त है वो तो दिखाता है सचाई बस
लोग आईना मगर क्यूं तोड़ देते हैं